Thursday, September 11, 2008

हिन्दी...

हमारी राष्ट्रभाषा है। परन्तु आज ऐसा समय आ गया है कि कुछ मुट्ठी भर लोगों को किसी व्यक्ति द्बारा हिन्दी बोले जाने पर ठेस पहुचती है। आने वाले समय में हिन्दी कि क्या गति होने वाली है, इसका अनुमान लगाना कठिन नहीं है। मुझे अति कष्ट तब पहुचता है जब हिन्दी चलचित्रों के कलाकार गर्वित होके कहते हैं कि वे हिन्दी के पाठ पढ़ रहे हैं।

कुछ समय पहेले मेरे एक मित्र द्बारा मुझे एक बोध कथा भेजी गई। वही बोध कथा जब मैंने अपने सहभागिओं को वितरित की, तब उनमें से अधिकांश को पढने में अत्यन्त कठिनाई हुई। परन्तु ऐसी स्थिति में कभी किसी को कोई ग्लानी ये पश्चाताप नहीं होता। वे गर्वित अनुभव करते हैं। परन्तु किसी को अंग्रेज़ी ना आना उसके अशिक्षित होने का पर्यायवाची हो जाता है.....यह अत्यन्त दुखदायी है।

चलचित्रों की यदि बात करें.... तो याद करें की पहले नाम हिन्दी, उर्दू एवं अंग्रेज़ी में आते ठे....परन्तु अब द्रोद्रोणा और राम रामा बन गए हैं।

हिन्दी चलचित्र के सभी पुरस्कार वितरण समारोहों में हिन्दी का शुन्य समान प्रयोग किया जाता है। हमारे अभिनेता जिस भाषा का प्रयोग चलचित्रों में करके प्रचलित होते हैं, उसी का प्रयोग करने में लज्जित होते हैं। यह लज्जा की बात है......




व्यर्थ रहा जीवन में जो भी प्राप्त किया मैंने
ज्ञात को ताज प्राप्त समस्त अज्ञात किया मैंने
स्मृतिया मधुर सभी सालती रही यद्यपि
जीवन समस्त विस्म्रित्यो को प्राप्त किया मैंने
ज्ञान वो जो अज्ञात के ज्ञात होने से हो प्राप्त
कर विचार प्राप्त समस्त अज्ञान किया मैंने
नश्वर संसार की अनश्वर प्रवृति
बिसार आत्मा को आकृति पूजन की जगत रीति
सम्पूर्ण ज्ञात जीवन कर्म का प्राप्त एक-मात्र
अंत अवम आरंभ से हीन अज्ञात मृत्यु !!!

1 comment:

Anonymous said...

good thought soaked article.. but PJ i still think we too also fall in same category.... yes we use Hindi whenever we are in our comfort zone... but don we too start speaking in English in order to impress others.... i still remember we used to celebrate hindi pakhwada in school.. all those valiant attempt to save hindi seems to be lost now..

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