pic of the valley from my hostel at IIM KI was listening to some beautiful poems from my favorite hindi poet
Dr Kumar Vishwasकोइ दीवाना केह्ता है, कोइ पागल समझता है,
मगर धरती कि बैचैनी को बस बादल समझता है,
मैं तुझसे दूर कैसा हू,तु मुझसे दूर कैसी है,
ये तेरा दिल समझता है या मेर दिल समझता है
For complete poem click
here (video) or
here (lyrics)I added a couple of paragraphs to it. :) Dedicated to a very dear friend of mine!! :)
जुड़े नाते थे जो सारे, मैं वो सब तोड़ के आया,
हाँ सच है मीठी यादों को मैं फिर भी ओढ़ के आया,
था छोडा उस फसाने को हसीं सा मोड़ एक देकर,
मगर उन भीगी आँखों में मैं खुद को छोड़ के आया!
जो खा ठोकर संभालता हूँ, तो क्यूँ दूं दोष राहों को
किसी के आंसू बह बह के, धोएँगे मेरे घावों को
बताओ कौन फ़रिश्ता है, नज़र आये तो पहचानू ,
कभी पूछूँ पहाडों को, कभी नदियों को, गावों को !
1 comment:
wah ustaad wah...
Post a Comment